मायके से ससुराल का सफर

मां मायके में डॉट लगाती सास ससुराल में ताने देती हैं
मां तो सिर्फ समझाती सास तो अनेको व्याख्यान कर लेती हैं।
पहले पापा की आंखों से डरती अब ससुर जी की नजरो से बचती,
चार कदम अकेले ना चल पाए ऐसे भी तुम क्यों हो डरती।
मायके के चूल्हे से लेकर जो ससुराल के चूल्हे से लिपटती
ऐसी पाबंदियों में हर एक नारी हैं सिमटती।
मायका हो या ससुराल इनको वे घर कह नही सकती
क्योंकि दोनों घरों के बीच जोरों से जो हैं ये बिलखती।
मां कहती लोग क्या कहेंगे सास कहती हैं समाज हंसेगा
रहने दे बहु दफ्तर को घर के कामों को कौन संभालेगा।
पढ़ी लिखी हो तो घर संभालो क्यों तुम बनोगी जिला कलेक्टर,
अब छोड़ो भी जिद ये ऐसी चलो काम बाकी हैं अभी अंदर।
गांव रहो क्यों शहर हैं जाना ये पिता पति की आवाज
एक की डर से दूसरे के जिगर से दे दोगी अनचाहे जवाब।
बोली मुझे भी पढ़ना हैं करनी है कुछ नई तलाश
घर तक ही सीमित रहूंगी तो कैसे बनूंगी मैं इतिहास।
अकेले कैसे रहोगी बोला पति ने तनकर बाते तमाम
सब बाते बनाएंगे ऐसे ही तुम पर कैसे करोगी तुम ये काम।
बोली जब दो घर की इज्जत मैने ही संभाली हैं
अनेको प्रथाओं से बचकर मैने भी तो बात संवारी हैं,
क्या तुम अब भी पूरा नहीं होने दोगे ख्वाब मेरा,
बोलो ना क्यों चुप हो तुम क्या ये चुप्पी जवाब तुम्हारा।
छोड़ गया उसके प्रश्नों के उत्तर को चले गया हैं छोड़ विदेश।
आज ख्वाब टूट के उसका रह गया है कुछ इस तरह शेष।
आज मन हृदय मचल उठा देख के ये ऐसे सफर समाज
क्या बना पाएगी सुहानी हर एक नारी को तीर कमान।
आज स्वयं पे प्रश्नचिन्ह लगाती मैं ऐसे बिलख उठी,
मायके और ससुराल के बीच भावनाओ की कलम आ टपकी।
✍️सुहानी जोशी
उत्तराखंड……
मां तो सिर्फ समझाती सास तो अनेको व्याख्यान कर लेती हैं।
पहले पापा की आंखों से डरती अब ससुर जी की नजरो से बचती,
चार कदम अकेले ना चल पाए ऐसे भी तुम क्यों हो डरती।
मायके के चूल्हे से लेकर जो ससुराल के चूल्हे से लिपटती
ऐसी पाबंदियों में हर एक नारी हैं सिमटती।
मायका हो या ससुराल इनको वे घर कह नही सकती
क्योंकि दोनों घरों के बीच जोरों से जो हैं ये बिलखती।
मां कहती लोग क्या कहेंगे सास कहती हैं समाज हंसेगा
रहने दे बहु दफ्तर को घर के कामों को कौन संभालेगा।
पढ़ी लिखी हो तो घर संभालो क्यों तुम बनोगी जिला कलेक्टर,
अब छोड़ो भी जिद ये ऐसी चलो काम बाकी हैं अभी अंदर।
गांव रहो क्यों शहर हैं जाना ये पिता पति की आवाज
एक की डर से दूसरे के जिगर से दे दोगी अनचाहे जवाब।
बोली मुझे भी पढ़ना हैं करनी है कुछ नई तलाश
घर तक ही सीमित रहूंगी तो कैसे बनूंगी मैं इतिहास।
अकेले कैसे रहोगी बोला पति ने तनकर बाते तमाम
सब बाते बनाएंगे ऐसे ही तुम पर कैसे करोगी तुम ये काम।
बोली जब दो घर की इज्जत मैने ही संभाली हैं
अनेको प्रथाओं से बचकर मैने भी तो बात संवारी हैं,
क्या तुम अब भी पूरा नहीं होने दोगे ख्वाब मेरा,
बोलो ना क्यों चुप हो तुम क्या ये चुप्पी जवाब तुम्हारा।
छोड़ गया उसके प्रश्नों के उत्तर को चले गया हैं छोड़ विदेश।
आज ख्वाब टूट के उसका रह गया है कुछ इस तरह शेष।
आज मन हृदय मचल उठा देख के ये ऐसे सफर समाज
क्या बना पाएगी सुहानी हर एक नारी को तीर कमान।
आज स्वयं पे प्रश्नचिन्ह लगाती मैं ऐसे बिलख उठी,
मायके और ससुराल के बीच भावनाओ की कलम आ टपकी।
✍️सुहानी जोशी
उत्तराखंड……
1 Comment
M.C. BAJAJ · March 8, 2022 at 7:53 PM
Nice lines on International woman’s day..